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स्वास्थ्य

नश्तर चलाये बगैर स्तन कैंसर का इलाज

विनोद विप्लव - 07-07-2010 11:53 GMT-0000
हर साल हजारों महिलाओं को मौत का ग्रास बनाने वाले स्तन कैंसर की कोशिकाओं को पूरी तरह से नष्ट करने के लिये अक्सर स्तन को काटना पड़ता है या स्तन में चीर-फाड़ करनी पड़ती है लेकिन अब इंडोस्कोपी की मदद से छोटे से चीरे की मदद से ही स्तन कैंसर का इलाज किया जा सकेगा। बनाता है लेकिन के इलाज की क्षेत्र में प्रकेाप में तेजी आ रही है लेकिन स्तन की नयी इंडोस्कोपी सर्जरी से स्तन कैंसर की मरीजों को नया जीवन दान दिया जा सकेगा। सुप्रसिद्ध सर्जन तथा एसोसिएशन आफ सर्जन्स की भारतीय शाखा के अध्यक्ष डा. नरेन्द्र कुमार पाण्डे के अनुसार इंडोस्कोपिक ब्रेस्ट सर्जरी कई देशों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
समाज

आत्महत्या के लिए भी विवश कर देता है चमकती दुनिया का अंधेरा

वर्तिका तोमर - 06-07-2010 09:58 GMT-0000
गुरूदत्त, परबीन बॉबी, नफीसा जोसफ, कुलजीत, टॉम निकॉन और विवेका बाबाजी जैसी लाखों करोड़ों दिलों पर राज करने वाली हस्तियां आखिर खुदकुशी जैसे कदम क्यों उठा लेती हैं। इनके जगमगाते जीवन में आखिर किस तरह का अंधेरा होता है। प्रसिद्धी, ग्लैमर, सुख-सुविधाओं और चमक-दमक के पीछे कैसा शून्य होता है जिसके कारण उन्हें अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेना ही एकमात्र रास्ता नजर आता है।

दुबली-पतली दिखने की प्रवृत्ति से कैंसर का खतरा

विशेष संवाददाता - 26-06-2010 07:43 GMT-0000
लड़कियों में छरहरेपन की चाहत में दुबली-पतली हो जाने का रास्ता खतरनाक है। 'जीरो साइज' में दिखने के क्रेज तथा खान-पान एवं रहन-सहन की आधुनिक प्रवृतियों के कारण स्तन कैंसर का प्रकोप बढ़ रहा है। फिल्मी अभिनेत्रियों एवं फैशन मॉडलों की देखादेखी लड़कियां दुबली-पतली दिखना चाहती हैं लेकिन कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि लड़कियों में बढ़ रहा यह शौक बाद के दिनों के लिये घातक साबित हो सकता है और उन्हें स्तन कैंसर का शिकार बना सकता है।

ऑनर किलिंग: संवेदना की हत्या

वर्तिका तोमर - 25-06-2010 12:15 GMT-0000
सरकार को अपने पागलखानों को एक बार दोबारा जाँचना और परखना चाहिए। क्या उनमें इतनी क्षमता है कि वे रोज 10-20 परिवारों को दाखिल कर सकें? सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही एक बीमारी अब महामारी बन चुकी है। इस घातक मानसिक बीमारी का लोग तेजी से शिकार हो रहे हैं और समाज के शांति प्रिय वर्ग के लिए बड़ा खतरा बन रहे हैं। यह बीमारी जब बेकाबू हो जाती है तो लोग अपने ही बच्चों का कत्ल करने लगते हैं। कुछ विक्षिप्तों का समूह मानवता को अपने गटर में फेंक कर छाती ठोक कर खून करता है। इस कारनामे को ठीक उसी तरह अंजाम दिया जाता है जैसे कट्टी खाने में मुलायम खाल के लिए बछड़े को दौड़ा-दौड़ा कर मरने तक पीटा जाता है, फिर उसकी गर्दन को छुरी से काट दिया जाता है। फिर अपने बच्चों की खाल ओढ़कर समाज के ये विक्षिप्त ठेकेदार अपनी कथित इज्जत बचाते हैं।

अब शीशे के रूप में होगा प्रोटीन

फर्स्ट न्यूज लाइव - 25-06-2010 12:00 GMT-0000
भविष्य में प्रोटीन को शीशे के रूप में संरक्षित रखा जायेगा और जरूरत के अनुसार उससे दवाइयां बनायी जायेंगी। ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने प्रोटीन को शीशे के रूप में संरक्षित रखने की तकनीक का इजाद किया है जिससे कैंसर सहित अन्य बीमारियों के इलाज के लिए नयी दवाइयों के विकास की उम्मीद बनी है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इनका इस्तेमाल जैविक दवाओं के रूप में शरीर में सीधे इंजेक्ट करने के लिए किया जा सकेगा।

ओवरटाइम हो सकता है घातक

फर्स्ट न्यूज लाइव - 25-06-2010 11:52 GMT-0000
कर्मचारियों में ओवरटाइम करने की ललक ज्यादा होती है। कई कंपनियां भी कर्मचारियों से ओवर टाइम लेना पंसद करती हैं लेकिन नये वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि ओवर टाइम स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकता है। ब्रिटिश हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक ताजा अध्ययन के अनुसार रोजाना तीन से चार घंटे तक आवरटाइम काम करने वाले लोगों में दिल की बीमारियों का खतरा 60 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

मां का दुलार बच्चे को बनाता है कुशल

फर्स्ट न्यूज लाइव - 25-06-2010 11:46 GMT-0000
बचपन में मां का भरपूर प्यार पाने वाले बच्चे को व्यवहार संबंधी समस्यायें कम होती है जबकि जिन बच्चों का बचपन में अपनी मां के साथ असुरक्षित जुड़ाव होता है उनमें बाल्यावस्था के बाद व्यवहार संबंधित अधिक समस्याएं होती हैं।

चेतन को परिशुद्ध करने का विज्ञान है योग

हृदयनारायण दीक्षित - 13-02-2010 17:39 GMT-0000
ऋग्वेद और उपनिषद्‌ साहित्य में इसकी उत्पत्ति हिरण्यगर्भ से बताई गयी है। डॉ० राधाकृष्णन के भाष्य में गीता के छठे अध्याय का शीर्षक है सा योग। भारतीय लोकजीवन में आत्मा शब्द का चलन है। गीता में आत्मा शब्द की भरमार है। आत्मा व्यक्ति का 'चेतन संसार' है। योग इसी चेतन को परिशुद्ध करने का विज्ञान है।

रामचरितमानस में लोक मंगल की कामना

राजीव मिश्र - 08-02-2010 16:25 GMT-0000
राम की कथा गोस्वामी तुलसीदास से पहले देववाणी संस्कृत में ही लिखी गर्ई थी और जन साधारण के लिए यह केवल 'श्रवणीय' थी क्योंकि वह भाषा जिसमें रामकथा लिखि गयी थी, उसके लिए सहज ग्राह्‌य नहीं थी और भाषा की क्लिष्टता के कारण उसकी पठनीयता बाधित थी। बड़े ही साहस के साथ गोस्वामी तुलसीदास ने तत्कालीन बोलचाल की भाषा में रामकथा लिखनी प्रारंभ की।

पानी के लिए लोग होंगे पानी-पानी

संतोष सारंग - 08-02-2010 16:18 GMT-0000
आज विश्व की लगभग एक अरब आबादी को जल के लिए तरसना पड़ रहा है। भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, ब्राजील जैसे तमाम विकासशील देशों में लाखों लोग गंदे पानी से पैदा होनेवाली बीमारियों के कारण मौत के ग्रास बन जाते हैं। धरती के संपूर्ण जल में साफ पानी का प्रतिशत ०.३ से भी कम है। आनेवाले अगले २० वर्षों में खेती, उद्योग सहित अन्य क्रियाकलापों के लिए ५७ फीसदी अतिरिक्त जल की आवश्यकता होगी। कुछ दशक पूर्व पर्यावरणविदें एवं जल विशषज्ञों ने भविष्यवाणियां की थीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा ।