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सजा काटकर शशिकला की जेल से वापसी

सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के लिए बज रही है खतरे की घंटी
एस सेतुरमन - 2021-02-11 09:41 UTC
दिवंगत सर्वोच्च नेता सुश्री जयललिता की विश्वासपात्र सुश्री शशिकला की जेल से वापसी हो चुकी है। सोमवार को बेंगलुरु से चेन्नई जाने की उनकी यात्रा 17 घंटे की रही और वह एक शानदार यात्रा थी। कई केंद्रों पर सभी रस्मी स्वागत और भीड़ के जश्न के बीच, उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी की चुनावी योजनाओं को लेकर एक मजबूत राजनीतिक संदेश दिया।

भारत का 2021-22 का बजट मोदी सरकार के लिए एक बडा जुआ है

विकास दर और घाटे के प्रोजेक्शन में इसकी सफलता छिपी हुई है
नंतू बनर्जी - 2021-02-10 09:49 UTC
सरकार के 2021-22 के बजट अनुमानों के पीछे बहुत सी धारणाएँ भारत के नए बजट को एक बड़ा जुआ बनाती हैं। आगामी वित्त वर्ष में 34.83 लाख करोड़ रुपये 2021-22 में 19.76 लाख करोड़ रुपये की प्राप्तियों (उधार के अलावा) के अधीन है, जो कि 2020-21 के संशोधित अनुमान से 23 प्रतिशत अधिक है। 2020-21 में प्राप्तियों के लिए संशोधित अनुमान महामारी के कारण वर्ष के लिए मूल बजट अनुमानों से 29 प्रतिशत कम थे। 2021-22 के लिए बजट प्राप्तियों का लक्ष्य पूरी तरह से इस महत्वपूर्ण धारणा पर आधारित है कि नॉमिनल जीडीपी 14.4 प्रतिशत बढ़ेगा। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के अपने मुख्य आर्थिक सलाहकार जीडीपी के पूर्वानुमान के आधार पर भिन्न भिन्न राय रखते हैं।

उत्तराखंड के एक ग्लेसियर फटने का मामला

हिमालय से आपराधिक छेड़खानी के नतीजे तो भुगतने ही होंगे!
अनिल जैन - 2021-02-09 10:14 UTC
उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी क्षेत्र में बरसात के मौसम में तो बादल फटने, ग्लेशियर टूटने, बाढ आने, जमीन दरकने और भूकंप के झटकों की वजह से जान-माल की तबाही होती ही रहती है। ऐसी आपदाओं का कहर कभी उत्तराखंड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तो कभी पूर्वोत्तर के राज्य अक्सर झेलते रहते हैं। लेकिन यह पहला मौका है जब सर्दी के मौसम में उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने के रूप में कुदरत का कहर बरपा है। वहां चमोली जिले में नंदादेवी ग्लेशियर के टूटने से भीषण तबाही मची है और बडे पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है। आश्चर्यजनक रूप से सर्दी के मौसम में घटी यह घटना एक नए खतरे की ओर इशारा करती है। कहने को तो यह खतरा प्राकृतिक है और इसे जलवायु चक्र में हो रहे परिवर्तन से भी जोडकर देखा जा रहा है लेकिन असल में यह मनुष्य की खुदगर्जी और विनाशकारी विकास की भूख से उपजा संकट है।

किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण

प्रधानमंत्री मोदी कृषि कानून की लड़ाई हार चुके हैं
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-02-08 11:06 UTC
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी भी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और कृषि कानूनों के पक्ष में लगातार बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं है कि जब पूरा देश लॉकडाउन के कारण घरों में बंद था, तो अध्यादेश के द्वारा इन कानूनों को बनाने की क्या जरूरत थी। उनके पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि संसद में इस पर बहस कराए बिना इसे क्यों पारित कराया गया। उनके पास इस सवाल का जवाब भी नहीं है कि राज्यसभा में जब उनकी पार्टी अल्पमत में है और उनके राजग सहयोगी दलों में भी उन कानूनों को लेकर विरोध था, तो फिर राज्यसभा में मत विभाजन क्यों नहीं कराया गया।

मध्य प्रदेश में राममंदिर के चंदे के नाम पर हुड़दंग

पुलिस की मौजूदगी में अल्पसंख्यकों पर हमले
एल एस हरदेनिया - 2021-02-06 10:01 UTC
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के कुछ स्थानों पर घटी साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के दौरान बहुसंख्यकों के संगठनों के सामने पुलिस ने घुटने टेक दिए और अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को रोकने के बजाए मूकदर्शक की भूमिका अदा की। इस नतीजे पर वह स्वतंत्र जांच दल पहुंचा है जिसने अभी हाल में प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण किया।

म्यांमार में सैनिक तख्तापलट

भारत को सावधानीपूर्वक लोकतांत्रिक ताकतों का साथ देना होगा
बरुन दास गुप्ता - 2021-02-05 16:14 UTC
लोकतंत्र के साथ म्यांमार का एक दशक पुराना नाता समाप्त हो गया है। सेना ने फिर से सत्ता पर कब्जा कर लिया है और एक वर्ष के लिए राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया गया है। अगर सेना चाहे तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। सेना ने 2011 तक पचास वर्षों तक शासन किया था, और उसके बाद जब पहले चुनाव हुए, जो न तो स्वतंत्र थे और न ही निष्पक्ष थे। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (छस्क्) अपने नेता आंग सान सू की और उनके सहयोगियों के साथ अब भी सलाखों के पीछे थीं। यह पिछले साल नवंबर में हुए तीसरे आम चुनाव में फिर से सत्ता में आ गया। पिछले दस वर्षों में चुनी हुई सरकार और सेना के बीच एक असहज भागीदारी देखी गई, जिसमें नागरिक सरकार की बड़ी और अशुभ छाया हमेशा बड़ी होती रही।

सबकी स्वास्थ्य सेवा की ओर बजट का ध्यान नहीं

बच्चों के आहार पर खर्च में कमी चिंता का कारण
डॉ अरुण मित्रा - 2021-02-04 15:43 UTC
कोविड महामारी ने स्वास्थ्य सेवा में असमानताओं को उजागर किया है। समाज के गरीब और मध्यम आय वर्गों की देखभाल के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता बिलकुल स्पष्ट दिखी। आर्थिक रूप से अच्छी तरह से संपन्न वर्गों को निजी क्षेत्र से उपचार मिल सकता है। कॉरपोरेट अस्पतालों ने सरकार के नियमों का पालन नहीं किया। इसलिए यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य पर बजट को व्यापक सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की दिशा दी जानी चाहिए।

काँग्रेस ने मध्य प्रदेश में किसान रैली का आयोजन किया

जवाब में चौहान ने नये कार्यक्रमों की घोषणा की
एल एस हरदेनिया - 2021-02-03 10:59 UTC
भोपालः शिव कुमार शर्मा ‘कक्काजी’ के इस दावे के बावजूद कि मध्य प्रदेश के किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में बड़े उत्साह के साथ भाग ले रहे हैं, जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

संकट काल का बजट

सरकारी संपत्तियों को बेचने की जगह रुपया छापा जाना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-02-02 10:07 UTC
निर्मला सीतारमण ने अपना यह बजट ऐसे समय में पेश किया है, जब देश अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है और सरकार के सामने जबर्दस्त वित्तीय संकट मौजूद है। पिछला बजट पेश करते समय वित्तमंत्री ने केन्द्र सरकार के राजकोषीय घाटे का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद के साढ़े तीन फीसदी लगाया था, लेकिन अब अनुमान है कि यह साढ़े नौ फीसदी हो गया है। अभी भी चालू वित्त वर्ष के दो महीने शेष हैं। इसलिए पूरी संभावना है कि वास्तविक राजकोषीय घाटा 10 फीसदी से ज्यादा ही होगा।

लाल किले पर हाय-तौबा

इस राष्ट्रीय गौरव को तो सरकार पहले ही ठेके पर दे चुकी है!
अनिल जैन - 2021-02-01 12:03 UTC
केंद्र सरकार के बनाए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन में दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला भी चर्चा में आ गया है। कृषि सुधार के नाम पर बनाए गए तीनों कानूनों को अपने लिए ‘डेथ वारंट’ मान रहे किसानों की ट्रैक्टर रैली में 26 जनवरी को कुछ जगह उपद्रव होने की खबरों के बीच सबसे ज्यादा फोकस इस बात पर रहा कि कुछ लोगों ने लाल किले पर तिरंगे के बजाय दूसरा झंडा फहरा दिया।