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क्या राहुल वास्तव में वंशवाद की राजनीति के खिलाफ हैं?

कांग्रेस उपाध्यक्ष लंबे समय की राजनीति कर रहे हैं
हरिहर स्वरूप - 2013-03-11 13:43
राहुल गांधी आमतौर पर संसद भवन के सेंट्रल हॉल में नहीं आते हैं। इसलिए पिछले सप्ताह सेंट्रल हॉल में राहुल गांधी का आना एक अप्रत्याशित घटना थी। पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद वे पहली बार सेंट्रल हॉल में आए थे। सांसदों और पत्रकारों ने उन्हें वहां आते ही चारों ओर से घेर लिया। संवाददाता उनसे सवाल करते उसके पहले ही उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि मुझसे यह सवाल करना गलत होगा कि क्या मैं प्रधानमंत्री बनने जा रहा हूं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनकी प्राथमिकता नहीं है, बल्कि पार्टी को खड़ा करने में उनकी पहली दिलचस्पी है।

उत्तरपूर्व के तीन राज्यों के चुनावी संकेत

लोकतांत्रिक व्यवहार के लिए ये वाकई मिसाल हैं
अवधेश कुमार - 2013-03-09 11:56
उत्तरपूर्व को भारत का स्वर्ग मानने की चाहे जितनी कहावतें हमारे जेहन में भरीं गईं हों, वहां की आम राजनीतिक गतिविधियां मीडिया में वैसी सुर्खियां नहीं पातीं जिनकी वे हकदार हैं। आप देख लीजिए, तीन प्रमुख राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड एवं मेघायल में चुनाव प्रक्रिया समाप्त हो गई, पर हमने इसकी वैसी चर्चा नहीं की जैसी आम उत्तर या दक्षिण भारतीय राज्यों के चुनाव की करते हैं।

भाजपा ने मोदी की लगभग ताजपोशी कर ही दी

क्या राजग के घटक उन्हें स्वीकार कर लेंगे?
कल्याणी शंकर - 2013-03-08 14:03
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए मीडिया ने नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठनबंधन का प्रधानमंत्री उम्मीदवार लगभग बना ही दिया है। श्री मोदी ने भी प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को नहीं छिपाया और बिना साफ शब्दों में कहे ही लोगों को बता दिया कि राजग की ओर से प्रधानमंत्री के एकमात्र उम्मीदवार वे ही हैं। पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया।

त्रिपुरा चुनाव के नतीजे

वाम मोर्चा की लगातार पांचवीं जीत
बरुण दास गुप्ता - 2013-03-07 17:04
कोलकाताः हार की सभी भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए सीपीएम ने त्रिपुरा चुनाव में फिर एक बार शानदार जीत हासिल की। यह उसकी लगातार पांचवीं जीत है। कांग्रेस हार से स्तब्ध है। उसने अपनी जीत तय मान रखी थी। उसे लग रहा था कि वामदलों का अंतिम गढ़ वह फतह कर डालेगी। जब मतगणना के शुरुआती रुझान सामने आ रहे थे और सीपीएम आगे चल रही थी, उस समय भी कांग्रेस के नेता यह कह रहे थे कि गिनती समाप्त होते होते पासा उसके हाथ मे आ जाएगा। वे किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे, पर कोई चमत्कार हुआ नहीं। मुख्यमंत्री माणिक सरकार शांत होकर सबकुछ देख रहे थे। उन्हें अपनी जीत पर पूरा भरोसा था, क्योंकि वे यह मान रहे थे कि लोग उनके साथ हैं। अंत में उनके भरोसे और विश्वास की ही जीत हुई।

कुंडा कांड से उठते सवाल

सांप्रदायिक नजरिए से डीएसपी की मौत को क्यों देखें?
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-03-06 13:08
उत्तर प्रदेश के कुंडा की घटना जिसमें एक डीएसपी की हत्या हुई और जिसके बाद राजा भैया को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, कोई अभूतपूर्व घटना नहीं है। देश की सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश अरसे से आपराधिकरण, भ्रष्टाचार, जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति का शिकार हो गया है और उस स्थिति से निकलने का फिलहाल कोई संकेत भी नहीं मिल रहा है। डीएसपी की हत्या और उसके बाद की घटनाओं में सबकुछ यानी जातिवाद, सांप्रायिकता, अपराधीकरण और भ्रष्टाचार एक साथ दिखाई पड़ रहे हैं।

मोगा उपचुनाव में अकाली दल की जीत

दलबदल की राजनीति अभी भी पंजाब में हावी है
बी के चम - 2013-03-05 17:17
चंडीगढ़ः कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनमें राजनीति को ही बदल देने की क्षमता होती है। कुछ घटनाएं लोगों के बदलते मूड को दिखाती हैं। मोगा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के नतीजे कुछ इसी तरह की एक घटना है।

आम बजट ने भी केरल को निराश किया

चिदंबरम ने बंसल का अनुकरण किया
पी श्रीकुमारन - 2013-03-04 13:28
तिरुअनंतपुरमः केरल के लिए यह दोहरा झटका है। पहले रेल बजट ने केरल को निराश किया था। उसके बाद आम बजट ने भी उसकी रही सही आशाओं पर पानी फेर दिया।

परिवारवाद की गिरफ्त में उत्तर प्रदेश भाजपा

पुराने दिग्गज को कर दिया गया उपेक्षित
प्रदीप कपूर - 2013-03-02 19:00
लखनऊः जब लोकसभा के चुनाव बहुत नजदीक दिख रहे हैं, वैसे समय में उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष एलके वाजपेयी द्वारा गठित की गई प्रदेश कार्यकारिणी की नई टीम ने पार्टी के लिए मुसीबतें खड़ा कर दी हैं।

काले धन के खिलाफ अभियान की उपेक्षा

व्यापार और उद्योग के लिए बजट में कुछ भी नहीं
नन्तू बनर्जी - 2013-03-01 14:12
वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने अपने वादे को निभाया। उन्होंने चुनावी बजट पेश नहीं किया और कुछ लेने व कुछ देने की प्रवृति से बजट को मुक्त रखा। ऐसा करके उन्होंने समाज के सभी तबकों को नाखुश कर दिया। आम आदमी भी इस बजट से नाखुश है तो देश के सबसे अमीर तबके के लोग भी इससे खुश नहीं हैं। सच तो यह है कि जिस राजकोषीय रस्सी पर वह चल रहे थे, उसके ऊपर चलते हुए वे कोई जोखिम नहीं उठा सकते थे। चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की बदहाली ने उनके काम को और भी कठिन कर दिया था।

एक सहमा हुआ बजट

कोई जोखिम नहीं लेना चाहते चिदंबरम
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-02-28 10:47
केन्द्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस साल पेश किए गए बजट में देश के किसी तबके को न तो खुशी मनाने का मौका दिया है और न ही गम करने का। बजट निर्माण के समय वे अमीरो पर ज्यादा टैक्स लगाने की बात जरूर रहे थे और तब लग रहा था कि शायद चुनावी बजट होने के कारण वे आम लोगों की बाहबाही लूटने के लिए कुछ खास योजनाएं लेकर आएंगे और उन्हें कुछ खास रियायतें भी देंगे और उसके लिए कोष उपलब्ध करने के अमीरों पर टैक्स का भार बढ़ा देंगे, पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।