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बिहार की हार से सबक नहीं ली मोदी ने

रोहित वेमुला ने प्रधानमंत्री की छवि की तार तार
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-01-30 11:29 UTC
कहा जाता है कि राजनैतिक दलों के नेता सत्ता पाने के बाद वास्तविकता से नाता तोड़ने लगते हैं। यही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हो रहा है। वे इस बात को भूल गए कि किन कारणों से लोकसभा में उनकी जीत हुई थी। वे समझते हैं कि गुजरात के विकास माॅडल के कारण उनकी जीत हुई थी और उनकी पार्टी और संघ परिवार के लोग समझते हैं कि वास्तव में यह उनकी विचारधारा की जीत थी। जबकि सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार विरोधी माहौल और नरेन्द्र मोदी के एक चायवाले ओबीसी परिवार से आने की छवि ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया और भारतीय जनता पार्टी के वे लोग भी जीत गए, जो भ्रष्ट रहे हैं और जिनकी छवि दलित और ओबीसी विरोधी है।

भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार और बढ़ेगा

नाथूला दोनों देशों के बीच व्यापार का नया ठिकाना
आशीष बिश्वास - 2016-01-29 12:44 UTC
कोलकाताः निवेशक और व्यापारी नाथुला दर्रा से भारत और चीन के बीच हो रहे व्यापार में बनी सुस्ती को लेकर चिंतित हैं, तो वहीं चीन उस क्षेत्र से व्यापार बढ़ाने के लिए कोई खास प्रयास करता दिखाई नहीं दे रहा है।

हिन्दू दक्षिणपंथियों ने वेमुला को आत्महत्या के लिए विवश किया

मोदी के मंत्री घोर दलित विरोधी हैं
अमूल्य गांगुली - 2016-01-28 11:22 UTC
भरे गलों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अम्बेडकर विश्वविद्यालय के एक दीक्षांत समारोह में भाषण देते हुए कहा कि रोहित वेमुला को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया गया। प्रधानमंत्री बहुत ही भावुक होकर यह बात कह रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि किन लोगों ने रोहित वेमुला को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह जानते हैं कि वे कौन लोग थे, जिनके कारण रोहित ने आत्महत्या की। दोषी कोई और नहीं, बल्कि खुद मोदी की मंत्रिपरिषद में शामिल दो व्यक्ति हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि वे अभी भी मंत्रिमंडल में बने हुए हैं। यदि उन दोनों मंत्रियों पर मुकदमा नहीं चलाया गया, तो दोनों अपने अपने पदों पर बने भी रहेंगे।
भारत

उतार पर है मॉल संस्कृति का नशा

मॉल्स में खाली जगह लगातार बढ़ रही है
अनिल जैन - 2016-01-27 11:37 UTC
मामला चाहे रहन-सहन का हो या पहनने-ओढ़ने का या फिर खाने-पीने का, पश्चिमी देशों की नकल करने में हम भारतीयों का और उसमें भी खासकर हमारे मध्यवर्ग का कोई जोड़ नहीं। हालांकि यह और बात है कि नकल का यह भूत ज्यादा दिन तक उसके सिर पर सवार नहीं रह पाता है। हमारे देश के महानगरों और बड़े शहरों में बने बड़े-बड़े चमचमाते मॉल्स भी पश्चिम का ही अनुसरण माना गया। लेकिन पिछले डेढ़ दशक के दौरान जिस तेजी से यह मॉल संस्कृति उभरी थी, अब उतनी ही तेजी से वह उतार पर है। लोगों का उससे मोहभंग हो रहा है। इस समय देश कि छोटे-बड़े शहरों में लगभग 700 मॉल हैं। एक विदेशी कंसल्टेंट कंपनी द्वारा कराए गए अध्ययन के मुताबिक दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई आदि महानगरों के करीब 300 प्रमुख शॉपिंग मॉल्स में से 15-20 मॉल्स में ही रौनक बनी हुई है और वे ठीक-ठाक कारोबारी हालत में है। मॉल कैपिटल ऑफ इंडिया कहलाने कहलाने वाले दिल्ली- एनसीआर में भी हालत कुछ ठीक नहीं हैं। यही नहीं, देश के उभरते जिन छोटे शहरों में कभी शॉपिंग मॉल्स समृद्धि की निशानी माने जाते थे, वहां भी अब वे अपना वजूद गंवाते नजर आ रहे हैं।
भारत: केरल

नतेशन के खिलाफ निगरानी विभाग की जांच

भाजपा और एसएनडीपी को झटका
पी श्रीकुमारन - 2016-01-25 11:14 UTC
तिरुअनंतपुरमः भारतीय जनता पार्टी और श्री नारायण धर्म परिपालना योगम (एसएनडीपी) के बीच गठबंधन कर एक बड़ी ताकत बनने की योजना को एक के बाद एक झटका लग रहा हैं।

गण और तंत्र के बीच बेगानापन

फिर भी यह कहना अनुचित कि भारत में गणतंत्र पूरी तरह असफल हो गया
अनिल जैन - 2016-01-23 11:00 UTC
अपने गणतंत्र के 67 वें वर्ष में प्रवेश करते वक्त हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यही हो सकती है कि क्या वाकई तंत्र और गण के बीच उस तरह का सहज और संवेदनशील रिश्ता बन पाया है जैसा कि एक व्यक्ति का अपने परिवार से होता है? आखिर आजादी और फिर संविधान के पीछे मूल भावना तो यही थी। महात्मा गांधी ने इस संदर्भ में कहा था- मैं ऐसे संविधान के लिए प्रयत्न करुंगा जिसमें छोटे से छोटे व्यक्ति को भी यह अहसास हो कि यह देश उसका है, इसके निर्माण में उनका योगदान है और उसकी आवाज का यहां महत्व है। मैं ऐसे संविधान के लिए प्रयत्न करुंगा जहां ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं होगा, जहां स्त्री-पुरुष के बीच समानता होगी और इसमें नशे जैसी बुराइयों के लिए कोई जगह नहीं होगी। ’ दरअसल, भारतीय गणतंत्र के मूल्यांकन की यही सबसे बड़ी कसौटी हो सकती है।

अमित शाह को दूसरा टर्म

चुनौतियां और भी ज्यादा हैं
कल्याणी शंकर - 2016-01-22 12:49 UTC
अमित शाह दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बन रहे हैं। सच तो यह है कि पूरे टर्म के लिए वे पहली बार अध्यक्ष बन रहे हैं। 23 जनवरी को उनका जो टर्म समाप्त हुआ, दरअसल उनका नहीं था, बल्कि राजनाथ सिंह का था। राजनाथ सिंह के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने और अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद उनका यह पद खाली हुआ है और राजनाथ सिंह के बचे शेष कार्यकाल के लिए अमित शाह को भाजपा का अध्यक्ष बना दिया गया।

रोहित वेमुला की आत्महत्या

नरेन्द्र मोदी के आम्बेडकर प्रेम की परीक्षा की घड़ी
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-01-21 20:07 UTC
अपने को ’नीची जाति’ का बताकर नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में बहुमत दिला दिया। बहुमत पाने के बाद उन जातियों के लोगों के लिए उन्होंने कोई काम तो नहीं किया, लेकिन बाबा साहिब भीम राव आम्बेडकर का ऐसा गुणगान शुरू कर दिया, मानों वे ही उनकी प्रेरणा के सा्रेत हों। आम्बेडकर से संबंधित प्रतिष्ठानों, भवनों, स्मृतिस्थलों और तिथियों को भी उन्होंने सम्मानित करना शुरू दिया। उन्होंने वह सबकुछ किया, जिसकी आम्बेडकरवादी लंबे समय से मांग करते आ रहे थे और जिस पर पूर्ववत्र्ती यूपीए की सरकार बहुत उत्साह नहीं दिखा रही थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आम्बेडकर की 125वीं जयंती वर्ष समारोहों को भी बहुत धूमधाम से मनाने का फैसला किया। जिस दिन भारत का संविधान तैयार होकर स्वीकृत हुआ, उस दिन को उन्होंने संविधान दिवस के रूप में घोषित कर उसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह एक राष्ट्रीय दिवस बना दिया और उस घोषणा को आम्बेडकर साहिब की 125वीं जयंती के एक समारोह के रूप में तब्दील कर दिया।

झारखंड का मानव निर्मित जल संकट

रियल इस्टेट वालों का लोभ समस्या को गंभीर बना रहा है
अरुण श्रीवास्तव - 2016-01-21 20:05 UTC
पिछले 10 सालों से झारखंड भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है। सत्ताधारी आभिजात्य वर्ग और राजनीतिज्ञ बस एक ही रट लगा रहे हैं कि जल संरक्षण के तरीकों को अपना कर इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा। हो सकता हो, वह सही हों, लेकिन इन लोगों के पास समस्या के हल के लिए कोई दृष्टि नहीं है।

सीपीएम के लिए बिछाया कांग्रेस ने जाल

क्या सीपीएम उसमें जा फंसेगी?
पी श्रीकुमारन - 2016-01-19 18:20 UTC
तिरुअनंतपुरमः क्या सीपीएम और इसके नेतृत्व वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (वालोमा) सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (संलोमा) के बिछाए जाल मे फंस जाएंगे?