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भोपाल गैस त्रासदी के 34 साल

अभी भी अनुत्तरित हैं सारे सवाल
अनिल जैन - 2018-12-03 11:10
दिसंबर 1984 के पहले सप्ताह में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से निकली जहरीली गैस (मिक यानी मिथाइल आइसो साइनाइट) ने अपने-अपने घरों में सोए हजारों को लोगों को एक झटके में हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया था। जिन लोगों को मौत अपने आगोश में नहीं समेट पाई थी वे उस जहरीली गैस के असर से मर-मर कर जिंदा रहने को मजबूर हो गए थे। ऐसे लोगों में कई लोग तो उचित इलाज के अभाव में मर गए और और जो किसी तरह जिंदा बच गए उन्हें तमाम संघर्षों के बावजूद न तो आज तक उचित मुआवजा मिल पाया है और न ही उस त्रासदी के बाद पैदा हुए खतरों से पार पाने के उपाय किए जा सके हैं। अब भी भोपाल में यूनियन कारबाइड कारखाने का सैंकडों टन जहरीला मलबा उसके परिसर में दबा या खुला पडा हुआ है। इस मलबे में कीटनाशक रसायनों के अलावा पारा, सीसा, क्रोमियम जैसे भारी तत्व है, जो सूरज की रोशनी में वाष्पित होकर हवा को और जमीन में दबे रासायनिक तत्व भू-जल को जहरीला बनाकर लोगों की सेहत पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं। यही नहीं, इसकी वजह से उस इलाके की जमीन में भी प्रदूषण लगातार फैलता जा रहा है और आसपास के इलाके भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। मगर न तो राज्य सरकार को इसकी फिक्र है और न केंद्र सरकार को।
विश्व दिव्यांग दिवस 3 दिसंबर पर विशेष

आखिर कैसे आत्मनिर्भर बन पायेंगे देश में दिव्यांगजन?

हम उनके प्रति दया या तिरस्कार का भाव न रखें
रमेश सर्राफ - 2018-12-01 09:50
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1992 में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के रूप में 3 दिसम्बर का दिन तय किया गया था। इस दिवस को समाज और विकास के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देना और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में दिव्यांग लोगों की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। दिसम्बर 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांगों को ‘दिव्यांग’ कहने की अपील की थी, जिसके पीछे उनका तर्क था कि किसी अंग से लाचार व्यक्तियों में ईश्वर प्रदत्त कुछ खास विशेषताएं होती हैं। तब से भारत में हर जगह विकलांग के स्थान पर दिव्यांग शब्द प्रयुक्त होने लगा है।

क्या हनुमानजी दलित थे?

देवताओं को जातियों में बांट रहे हैं योगीजी
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-11-30 10:09
राजस्थान में एक चुनावी भाषण में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने हनुमानजी को दलित बताकर अपने आपको प्रहसन का पात्र बना लिया है। योगी देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं हैं, बल्कि खुद एक संन्यासी हैं और धार्मिक प्रवचन देने में वे सिद्धहस्त माने जाते हैं। वे राजनीति में हैं और राजनैतिक भाषण करने का भी उनका लंबा अनुभव है और कहने की जरूरत नहीं कि वे एक अच्छे वक्ता भी हैं। यही कारण है कि देश में जहां कहीं भी चुनाव होता है, तो भारतीय जनता पार्टी की तरफ से उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में वहां भेजा जाता है। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद वे भारतीय जनता पार्टी के दूसरे सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं।

कश्मीर में राज्यपाल शासन

सत्ता सबको चाहिए, लोकतंत्र किसी को नहीं
अनिल जैन - 2018-11-29 10:41
अब इस हकीकत से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कश्मीर का मसला अपनी विकृति की चरम अवस्था में पहुंच गया है। मौजूदा सरकार, शासक दल और राज्यपाल के साथ ही सूबे की राजनीति को प्रभावित करने वाले तमाम राजनीतिक दलों के तेवरों को देखते हुए इस स्थिति का कोई तुरत-फुरत हल दिखाई नहीं देता। केंद्र सरकार ने पिछले साढे चार वर्षों के दौरान कश्मीर को लेकर जितने भी प्रयोग किए है, उससे तो मसला सुलझने के बजाय इतना ज्यादा उलझ गया है कि कश्मीर अब देश के लिए समस्या नहीं रहा बल्कि एक गंभीर प्रश्न बन गया है। वैसे यह प्रश्न बीज रूप में तो हमेशा ही मौजूद रहा लेकिन इसे विकसित करने का श्रेय उन नीतियों और फैसलों को है, जो अंध राष्ट्रवाद और संकुचित लोकतंत्र की देन हैं। इस सिलसिले में केंद्र में अलग-अलग समय पर रहीं अलग-अलग रंग की सरकारें ही नहीं, बल्कि सूबाई सरकारें भी बराबर की जिम्मेदार रही हैं।

उत्तर प्रदेश में विभाजित आरक्षण कार्ड

क्या हो पाएगा भाजपा को लाभ?
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-11-28 13:48
पिछले तीन दशकों से आरक्षण भारतीय राजनीति का सबसे ज्वलंत मुद्दा रहा है। इसके कारण अनेक सरकारें गिरी हैं और अनेक सरकारें गिरी हैं। राजनैतिक दल इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते रहे हैं और उनको फायदा होता भी रहा है। उत्तर प्रदेश में यह आने वाले समय में एक बार फिर राजनीति को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख मसला बनने वाला है। भले लोग कहें कि राम मंदिर सबसे बड़ा मसला होगा और भारतीय जनता पार्टी इसी मसले की राजनीति करके फिर से सत्ता हासिल करना चाहेगी, लेकिन अतीत में यह साबित हो चुका है कि राममंदिर एक स्तर तक ही भाजपा को फायदा पहुंचा पाती है और वह स्तर उसे सत्ता में नहीं पहुंचा पाता। इसलिए मंदिर के अलावा जो अन्य प्रमुख मसला उसके सामने है वह है आरक्षण।

मध्य प्रदेश चुनाव में क्षेत्रीय दलों की भी है भूमिका

योगेश कुमार गोयल - 2018-11-27 10:14
देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें सर्वाधिक महत्व मध्य प्रदेश का माना जा रहा है क्योंकि इन पांच राज्यों में सर्वाधिक 230 विधानसभा सीटें और सबसे ज्यादा 29 लोकसभा सीटें इसी राज्य में हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पांच करोड़ मतदाता 2907 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे, जिनमें 1102 निर्दलीय उम्मीदवार शामिल हैं।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावः क्या नारे से होंगे वारे-न्यारे

राजु कुमार - 2018-11-26 16:06
चुनावों में प्रचार का सबसे बड़ा महत्व है। सबसे ज्यादा खर्च प्रचार पर ही होता है, चाहे वह खर्च पार्टी करे या फिर प्रत्याशी। प्रचार के जो कंटेट होते हैं, वह चुनावोें में बहुत कारगर होते हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका नारों या स्लोगन की होती है। मध्यप्रदेश में भाजपा का नारा ‘‘माफ करे महाराज, हमारे नेता शिवराज’’ और कांग्रेस का नारा ‘‘कांग्रेस के साथ - वक्त है बदलाव का’’ में से ज्यादा कारगर कौन होता है, इसका फैसला 11 दिसंबर को होगा। आम आदमी पार्टी ‘‘बदलेंगे मध्यप्रदेश’’ और ‘‘भ्रष्ट भाजपा - भ्रष्ट कांग्रेस, आओ बदलें मध्यप्रदेश’’ के साथ जनता के बीच गई है।

अंडमान में अमेरिकी नागरिक की हत्याः आखिर चूक कैसे हुई ?

उपेन्द्र प्रसाद - 2018-11-26 09:45
अमेरिकन नागरिक जाॅन एलन चाउ अंडमान निकोबार की एक टापू पर मारा गया। सच कहा जाय, तो उसकी हत्या नहीं हुई, बल्कि उसने आत्महत्या कर ली। उसे पूरी तरह से पता था कि जो कुछ वह करने जा रहा है, उसका अंजाम उसकी मौत भी हो सकती है। उसने अपने परिवार वालों को यह संदेश भी छोड़ दिया था कि यदि वह वहां से वापस नहीं लौटता है और मारा जाता है, तो इसके लिए वे उस टापू के लोगों यानी उसके हत्यारों को जिम्मेदार न समझें और उन्हें माफ कर दें।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मां और मामा बन रहे हैं मुद्दे

कांग्रेसी चक्रव्यूह को तोड़ने की भाजपाई कोशिश
राजु कुमार - 2018-11-24 12:18
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस शुरुआत से ही भाजपा पर भारी पड़ रही है। बीच में ऐसा लगने लगा था कि भाजपा की रणनीति के आगे कांग्रेस पिछड़ रही है, लेकिन भाजपा जिस तरीके से इमोेशनल कार्ड खेलने लगी है, उससे लगता है कि वह कांग्रेसी चक्रव्यूह को भेद नहीं पाई है। यद्यपि यह कहना मुश्किल है कि किसकी रणनीति कारगर साबित होगी और किसकी सरकार बनेगी, लेकिन चुनाव के आखिरी दिनों में मां और मामा मुद्दे बनने लगे हैं।

अयोध्या विवाद पर तनातनी

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों नहीं कर लेते?
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-11-24 11:31
उधर मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका हुआ है और इधर अयोध्या में अभूतपूर्व स्थिति बन गई है। मंदिरवादी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को भी तैयार नहीं और वे किसी भी सूरत में मंदिर के निर्माण का काम शुरू करने पर उतावला हो रहे हैं। इसमें सबसे गंभीर बात तो यह है कि मंदिर निर्माण की धमकियों के बीच न तो केन्द्र की मोदी सरकार और न ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की ओर से कुछ भी कहा जा रहा है, हालांकि विवादित स्थल की सुरक्षा के लिए वहां पुलिस की भारी पैमाने पर तैनाती की जा रही है। पर सवाल यह है कि पुलिस वहां क्या कर लेगी? फैसला तो सरकार के राजनैतिक नेतृत्व यानी नरेन्द्र मोदी को करना है और वे क्या करेंगे, इसके बारे में वे किसी प्रकार का संकेत नहीं दे रहे हैं।