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गरीबी, भूख और स्वास्थ्यः भारतीय बदहाली की यह बुरी तस्वीर

डाॅक्टर अरुण मित्र - 2017-10-21 11:31 UTC
झारखंड के सिमडेगा जिले में एक 11 साल की बच्ची ने भूख से दम तोड़ दिया। इस घटना ने उन्हें भी झकझोर दिया है, जो राज्य के प्रशासनिक शिखर पर हैं। इसने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है हमारे देश में भूख की समस्या किस कदर बढ़ी हुई है। इंटरनेशनल फूड पाॅलिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 का प्रकाशन किया है और उसमें भारत 100वें स्थान पर है।

कांग्रेस का राहुल काल

किस आर्थिक माॅडल की पैरवी करेंगे राहुल?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-10-20 12:19 UTC
सोनिया गांधी द्वारा स्पष्ट किए जाने के बाद यह साफ हो गया है कि अब कुछ दिनों में ही राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर बैठे दिखाई देंगे। सवाल उठता है कि क्या राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की नीतियों और खासकर आर्थिक नीतियो में कोई बदलाव आएगा? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि आजादी के बाद कांग्रेस की आर्थिक नीतियों के इतिहास को हम दो भागों मे रखकर देखते हैं।

लोक की दिवाली पर बाजार का कब्जा

यह भारतीय दर्शन और जीवन पद्धति के सर्वथा प्रतिकूल है
अनिल जैन - 2017-10-18 10:02 UTC
नोटबंदी और जीएसटी की मार से आम आदमी के कराहने, छोटे और मध्यम कारोबारी तबके का कारोबार ठप होने, किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी रहने, नौकरियां खत्म होने की वजह से बेरोजगारों की संख्या में इजाफा होने और भुखमरी की वैश्विक स्थिति में भारत का स्थान और नीचे खिसक जाने की दारुण खबरें हमारी तथाकथित मजबूत अर्थव्यवस्था को मुंह चिढा रही हैं। इन्हीं खबरों के बीच देशवासी इस बार दीपावली मना रहे हैं। बाजार की बडी ताकतें, समाज का खाया-अघाया तबका, सामाजिक सरोकारों से पूरी तरह कट कर मुनाफाखोरी की लत का शिकार हो चुका मीडिया और इन सबसे ऊपर सत्तारूढ वर्ग, सब मिलकर माहौल यही बना रहे हैं कि देश में सब कुछ सामान्य है और लोग उत्साह से दिवाली मनाने में मगन है।

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का प्रभाव सर्वोपरि

पर सत्ता परिवर्तनशील रही है
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2017-10-17 11:14 UTC
राजतंत्र में शक्ति सदा से हावी रही तो लोकतंत्र में अभिव्यक्ति प्रभावी रही । सत्ता पाने के क्रम में छल प्रपंच की कला सदियों से चलती रही है। आज भी जारी है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का प्रभाव सर्वोपरि है। जिनके पास अभिव्यक्ति का माध्यम सशक्त है, जो तेज तर्रार , वाचाल है, जनता उसी के पास खींची चली आती है। राजनीति क्षेत्र से लेकर अध्यात्म तक अभिव्यक्ति के प्रभाव को आसानी से देखा जा सकता है। राजनीति में जिस नेता के पास बेहतर अभिव्यक्ति है, जनता उसी के सिर ताज रख देती है। अघ्यात्म में जिस गुरू के पास अभिव्यक्ति है, जनता उसे सारा कुछ सौंप देती है। इस तरह के अनेक उदाहरण वर्तमान परिवेष एवं इतिहास के आईने में देखे जा सकते है।

होशियारपुर के संदेशः भाजपा को रहना होगा अब होशियार

उपेन्द्र प्रसाद - 2017-10-16 10:21 UTC
पंजाब के होशियार लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। वह सीट भाजपा सांसद अभिनेता विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई थी। श्री खन्ना वहां से लगातार चुनाव जीत रहे थे। भाजपा की चुनावी स्थिति अच्छी हो या खराब, लेकिन अपनी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव के कारण वे चुनाव जीत ही लेते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी जीत हुई थी, जबकि पंजाब में भाजपा का प्रदर्शन अन्य उत्तर भारतीय प्रदेशों के मुकाबले बहुत खराब था।

देश के राजनीतिक मिजाज में बदलाव के संकेत

दम तोड़ रहा है मोदी का जादू
अनिल जैन - 2017-10-14 15:50 UTC
देश के कई विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में पिछले दिनों हुए छात्र संघ चुनाव के नतीजों को अगर देश के ताजा राजनीतिक मिजाज को मापने का पैमाना माना जाए तो संकेत साफ है कि देश के छात्र और युवा वर्ग में बेचैनी है और वह बदलाव के लिए आतुर है। यह संकेत केंद्र सहित देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के लिए चेतावनी है और बता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आकर्षण की चमक अब फीकी पडती जा रही है।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत आसान नहीं होगी

उपेन्द्र प्रसाद - 2017-10-13 13:10 UTC
हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के आमचुनाव की तारीखें तय कर दी गई हैं। आगामी 9 नवंबर को वहां मतदान होंगे और 18 दिसंबर को मतों की गणना होगी। मतदान की तारीख की घोषणा के 27 दिनों के अंदर ही मतदान कराकर निर्वाचन आयोग ने एक रिकाॅर्ड कायम कर दिया है। दूसरा रिकाॅर्ड गुजरात के चुनाव की तारीखों को साथ साथ घोषित नहीं करके बनाया गया है। दोनों राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल आगामी जनवरी महीने में समाप्त होते हैं। इसलिए कायदे से दोनों विधानसभाओं के लिए तारीखों की घोषणा एक साथ ही की जानी चाहिए थी, लेकिन निर्वाचन आयोग बेहद ही विचित्र तर्क दे रहा है कि गुजरात के चुनाव की तिथियां इसलिए घोषित नहीं की गई, क्योंकि आयोग नहीं चाहता कि वहां लंबे समय तक आदर्श चुनावी संहिता लागू रहे। गौरतलब हो कि चुनाव की तारीखें घोषित होते ही प्रदेश में आदर्श चुनावी संहिता अमल में आ जाती है और प्रदेश सरकार कोई लोकलुभावनी योजना या कार्यक्रम इस दौरान नहीं शुरू कर सकती।

राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए अच्छा समय

मोदी विरोधी भावना देश में पनप रही है
कल्याणी शंकर - 2017-10-12 13:47 UTC
अब राहुल गांधी 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनने के लिए अपने आपको तैयार कर रहे हैं। बहुत संभव है अगले महीने वे इस पद पर आसनी हो जाएं। इसे लेकर पार्टी के अंदर राहत की सांस ली जा रही है कि बहुत दिनों से चला आ रहा सस्पेंस अब समाप्त हो जाएगा।

केरल में हिंसक टकराव के बीच राजनीतिक जमीन की तलाश

यह हमारी अमानवीय चेहरे को सामने लाता है
अनिल जैन - 2017-10-11 13:24 UTC
भारतीय जनता पार्टी अपने ‘मिशन साउथ’ को पूरा करने के लिए मैदान में उतर चुकी है। दक्षिण भारत में वामपंथी दुर्ग कहा जाने वाला केरल उसका नया सियासी अखाडा है, जहां पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर हिंदुत्व का नया अखिल भारतीय पोस्टर ब्वॉय बनने को बेताब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कई केंद्रीय मंत्री सडक पर उतर चुके हैं। राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच पिछले दशकों से जारी खूनी संघर्ष का शोर अब दिल्ली में भी सुनाई देने लगा है। भाजपा का मंसूबा इस संघर्ष में हो रही संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मुद्दे को गरमा कर अगले विधानसभा चुनाव तक केरल की सत्ता पर काबिज होने या कम से कम मुख्य विरोधी दल के रूप में अपनी पहचान बनाने का है।

गुजरात विधानसभा चुनावः मोदी के लिए क्यों है यह बहुत महत्वपूर्ण

उपेन्द्र प्रसाद - 2017-10-10 14:06 UTC
गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा अभी तक नहीं हुई है, लेकिन वहां चुनावी संग्राम शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबतक वहां की ताबड़तोड़ तीन यात्राएं कर डाली हैं और उनकी ये यात्रा सरकारी कम चुनावी ज्यादा होती हैं। गुजरात को उन्होंने बुलेट ट्रेन की सौगात दी है। ताजा यात्रा के पहले जीएसटी मे बदलाव कर वहां के व्यापारी वर्ग को राहत देने की कोशिश की। मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों की तरह ही लेते हैं। आखिर ऐसा वे करें क्यों नहीं, क्योकि अपनी पार्टी को वोट दिलाने वाले वे अब अकेले नेता रह गए हैं। पार्टी जीत के लिए उनपर पूरी तरह निर्भर हो गई है। जहां मोदी का सिक्का चलता है, वहां भाजपा की जीत हो जाती है। बिहार में मोदी का सिक्का नहीं चला था, इसलिए भाजपा वहां हार गई, हालांकि हारने के बावजूद वह वहां सत्ता में है।