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गुजरात का घमसान

अपने घर में ही मोदी को मिल रही है शह
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-11-14 12:50 UTC
गुजरात का चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत ही भारी पड़ रहा है। उनकी पार्टी की जीत आसान नहीं दिख रही है, भले ही खबरिया चैनलों द्वारा किए जा रहे सर्वेक्षणों में भाजपा की भारी जीत की भविष्यवाणियां की जा रही हों। अब तो उन सर्वेक्षणों को मीडिया जगत में भी गंभीरता से नहीं लिया जाता और कहा जाता है कि उनके पीछे पैसे का खेल होता है और जो पार्टियां पैसा खर्च कर सकती हैं और जो चैनलों को वित्तीय फायदा किसी भी तरीके से पहुंचा सकती है, उनके पक्ष में सर्वेक्षण के नतीजे बताए जाते हैं। कभी वे नतीजे सही होते हैं, तो कभी गलत और कभी कभी तो वे नतीजे चुनाव परिणामों को भी पलटने में भूमिका अदा करते हैं। पर अब जब उन सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता समाप्त हो रही है, तो उनके द्वारा नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता भी लगातार कमजोर होती जा रही है।

नोटबंदी का एक साल

कहानी में और भी मोड़ हैं
अनिल सिन्हा - 2017-11-14 12:47 UTC
जब 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंाच सौ और हजार रूपए के नोटों का चलन खत्म करने घोषणा की तो देश के गरीब नाच उठे थे। मीडिया प्रचार के करण उन्हें एक ऐसा सुख मिल रहा था जो काल्पनिक था। उन्हें लगा था कि अमीरों के पास बोरियों में पड़े नोट बेकार हो जाएंगे। मुझे याद है जब दिल्ली के एक आटोरिक्शा वाले झूम कर कहा था कि मोदी यह काम कर सकता है। मोदी और भी आगे बढ गए थे। उन्होंने कहा था कि यह सिर्फ काला धन ही नहीं बल्कि आतंकवाद और नक्सलवादी हिंसा को खत्म करने में मदद करेगा।

प्रदूषण निवारण का खर्च उठाना राज्य की जिम्मेवारी

वायु प्रदूषण की कोई सीमा नहीं
डाॅक्टर अरुण मित्र - 2017-11-11 12:29 UTC
उत्तरी भारत में फैले स्माॅग ने जो समस्या पैदा कर दी है, वह बहुत बड़ी चिंता का कारण होना चाहिए। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली इससे सबसे ज्यादा तबाह हो रहा है। चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा ही इससे त्रस्त है। नमी के साथ प्रदूषित कणों के मिल जाने के कारण यह समस्या पैदा हुई है। ये प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों द्वारा निकल रहे धुंओं से पैदा हो रहा है। इसके अलावा फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुंआ, सड़कों पर उड़ने वाली धूल और कचरा जलाए जाने के कारण भी प्रदूषण के पदार्थ भारी पैमाने पर निकलते हैं। धान फसल की कटाई के बाद खेतों में फसल की खंूटियों के जलाए जाने से भी काफी धुआं निकलता है। जब तापमान नीचे गिरता है तो प्रदूषण के ये सारे कण एक दूसरे से मिलकर भारी होते हैं और जमीन की ओर आने लगते हैं। दिल्ली सहित उत्तर भारत के बड़े भूभाग पर यही हो रहा है। हवा की गति मंे आई कमी और वर्षा के अभाव ने मामले को और भी गंभीर बना दिया है।

दिल्ली एक मरता हुआ महानगर

आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-11-11 12:25 UTC
दिल्ली सहित पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण ने मारक रूप अख्तियार कर लिया है और सुप्रीम कोर्ट से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक इस समस्या को हल करने के लिए अपने अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा है। तरह तरह की तरकीबें सुझाई जा रही हैं और यह स्थिति पैदा होने के लिए तरह तरह के कारण बताए जा रहे हैं। दिल्ली सरकार 5 दिनों के लिए आॅड इवन फाॅर्मूले के तहत चैपहिया निजी वाहन चलवाएगी। निर्माण कार्यो पर रोक लगाने के आदेश जारी कर दिए है, जिन पर पूरी तरह से अमल ही नहीं होना है। कचरो को जलाए जाने पर भी रोक है, लेकिन इस पर भी अमल नहीं होने वाला है।

कालाधन उगाही वालों के बीच से कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार ?

भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए सरकार बना रही है कानून
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2017-11-09 11:53 UTC
कालाधन उगाही करने वालों के संरक्षण में अभी हाल ही में राजस्थान राज्य में वर्तमान भाजपा नेतृृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा विधेयक लाने का मामला उजागर हुआ है जिसका विरोध होने के कारण फिलहाल यह विधेयक प्रवर समिति को सौंप दिया गया है। इस विधेयक के विरोध में पत्रकारिता जगत में विशेष अभियान जारी है । साथ ही इस कानून के विरोध में विपक्षी दल के अलावे भाजपा के विशेष सहयोगी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संध ने भी आपति जतायी है। इस कानून को लोकतंत्र पर प्रहार बताते हुए काला कानून के रूप में विरोध हर जगह जारी है। जब तक कानून काला तब तक ताला प्रसंग प्रदेश में विशेष चर्चा का विषय आज बना हुआ है।

हिमाचल प्रदेश में अस्तित्व की लड़ाई

कांग्रेस के कमजोर अभियान से भाजपा को मिल सकता है फायदा
कल्याणी शंकर - 2017-11-09 11:50 UTC
वैसे सबकी आंखें गुजरात विधानसभा के चुनावी नतीजों पर टिकी हुई हैं, क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह प्रदेश है, लेकिन हिमाचल प्रदेश का चुनाव कोई कम मायने नहीं रखता है। यदि कांग्रेस वहां एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने में सफल हो जाती है, तो उसके हौसले काफी बुलंद हो जाएंगे। और यदि वहां भाजपा जीतती है, तो उसके जीतने का सिलसिला जारी रहेगा। इसलिए दोनों पार्टियों के लिए वहां बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है।

क्या ब्रह्मपुत्र पर खतरे में है?

चीन द्वारा सुरंग बनाने की खबर
बरुण दास गुप्ता - 2017-11-07 13:03 UTC
हांगकांग से छपने वाले एक अखबार दक्षिण चीन माॅर्निंग पोस्ट में एक खबर छपी कि चीन एक हजार किलोमीटर लंबी सुरंग बना रहा है, जो ब्रह्मपुत्र के पानी को तिब्बत से शिनशियांग प्रांत में भेजने का काम करेगा। गौरतलब हो कि शिनशियांग चीन का पश्चिमी प्रांत है और वहां पानी की भारी किल्लत रहती है। ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में यारलंग त्सांगपो कहा जाता है।

‘अतुल्य भारत’ में असुरक्षित विदेशी सैलानी

दुनिया में भारत की छवि खराब हो रही है
अनिल जैन - 2017-11-06 12:21 UTC
भारत की समृद्ध पर्यटन संपदा के बारे में मशहूर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने कहा है- ‘भारत वह भूमि है, जिसे दुनिया के तमाम लोग देखने की हसरत रखते हैं और जिन्होंने उसकी एक झलक भी देखी है, वे उस एक झलक के बदले दुनिया के तमाम नजारों को ठुकरा सकते है।’ मार्क ट्वेन का यह कथन भारत की सांस्कृतिक विविधता, चप्पे-चप्पे पर बिछा उतार-चढाव भरा इतिहास, उसी इतिहास से तादात्म्य बनाती अनमोल पुरा संपदा, बेमिसाल वास्तुशिल्प और नयनाभिराम प्राकृतिक नजारों की हकीकत बयान करने वाला है। शायद इसी हकीकत से रूबरू होने के लिए स्विस नागरिक क्वैंटीन जेरेमी क्लेर्क और उनकी महिला मित्र मैरी ड्रोज बीती 30 सितंबर को भारत आए थे।

स्वास्थ्य को सार्वजनिक बहस का विषय बनाना चाहिए

स्वास्थ्य संगठन लोगों की राय बदलने में सहायक हो सकते हैं
डाॅक्टर अरुण मित्र - 2017-11-04 12:39 UTC
स्वास्थ्य सभी लोगों की चिंता का विषय है। उत्पादकता में एक स्वस्थ व्यक्ति ही योगदान कर सकता है। इसके कारण ही ‘स्वास्थ्य ही धन है’ वाली कहावत बनी है। पिछले कुछ सालों में जीवन शैली में बदलाव के कारण अनेक बीमारियां अस्तित्व में आ गई हैं। डेंगू, चिकनगुनिया, एचआईवी व अन्य अनेक प्रकार के वाइरल बुखार लोगों को होने लगे हैं। पहले से ही उपस्थित बीमारियों के अलावा ये नई बीमारियां हमारे गंभीर विवेचन के विषय होने चाहिएं। चूंकि हमारे देश के स्वास्थ्य का जिम्मा मुख्य रूप से अब निजी क्षेत्र के पास है, इसलिए लोगों की चिंता अब कई गुना बढ़ गई है। एक बीमार व्यक्ति अपनी आमदनी खो देता है। वह बीमारी के दौरान दवाइयों और स्वास्थ्यवदर््धक भोजन पर आश्रित हो जाता है। उसे अपनी बीमारी के इलाज का भी खर्च उठाना पड़ता है। एक स्वस्थ व्यक्ति से ज्यादा उसे खर्च करना पड़ता है, जबकि उसकी आमदनी या तो समाप्त हो जाती है या कम हो जाती है।

नोटबंदी के एक साल: खोदा पहाड़ निकली चूहिया

उपेन्द्र प्रसाद - 2017-11-04 12:33 UTC
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के दो बड़ी करेंसी नोट को प्रचलन से रोकने की घोषणा के एक साल पूरे होने हैं। आजादी के बाद किसी सरकार द्वारा लिया गया यह सबसे बड़ा नीतिगत फैसला था और फैसले के बाद जिस तरह का इसे समर्थन मिला था, वह भी अभूतपूर्व था। इसे एक बड़ी क्रांति माना गया था, जिसमें बिना किसी एक गोली चलाए व्यवस्था परिवर्तन को अंजाम दिया गया मान लिया गया था। लगने लगा था कि काला धन रखने वालों के बुरे दिन शुरू हो गए हैं और देश एक ऐसे काल में प्रवेश कर गया है, जिसमें अवैध रूप से धन संग्रह करना अतीत की बात बन जाएगी। लिहाजा इस घोषणा को देश के आमलोगों का जबर्दस्त समर्थन मिला। जो लोग इसका विरोध कर रहे थे, उन्हें या तो लोगों ने गंभीरता से लिया ही नहीं या उन्हें काले धन के मालिकों का हमदर्द मान लिया गया।