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हम भूख से मरें और आप गुलछर्रे उड़ायें !

कुमार अमिताभ - 2010-05-27 08:55
जिस देश में एक तरफ भूख से लोग मरें, मेहनतकश इंसान सूदखोरों व दलालों के भय से आत्महत्या पर मजबूर हों, वहीं सरकारी गोदामों में रखा अनाज सड़े और आई पी एल क्रिकेट तथा कामनवेल्थ गेम जैसे खेल-तमाशों में अरबों रूपये उड़ाए जाएं तो किसको रोएं, यह प्रश्न, यक्ष प्रश्न को भी मात दे सकता है। ऐसा क्यूं है? देश की संपत्ति पर कुंडली मारे लोग सरकार व उसकी प्रबंध व्यवस्था पर इस कदर काबिज हैं कि घृतराष्ट्र दृष्टि भी शरम खाए। देश के कई राज्यों से लगातार आती ऐसी रपटें दिल दहला देती हैं। जब बच्चे मिट्टी खाने को मजबूर होते हैं। तो कोई आम की गुठली पर जिंदगी बिता रहा है। कहीं जंगली पत्तो से क्षुधा का शमन किया जा रहा है। ऐसा क्यूं है कि संपन्न्ता के विराट प्रतिमान सामने होते हुए भी लोग, मूल आवश्यकता की पूर्ति के अभाव में मर जाएं, ऐसे भी स्थल है, जहां मात्र 20 रूपये का भोजन 200 से 20,000 तक रूपये चुकाकर खाने वाले हैं, तो दूसरी तरफ दिनभर खटकर मात्र 20 रूपये हासिल कर पाने में अक्षम और उस पर जीवित नागरिकों की संख्या लगभग 80 प्रतिशत है।

5 हजार किलोमीटर तक की मारक क्षमता की अग्नि-5 मिसाईल का परीक्षण अगले वर्ष

विशेष संवाददाता - 2010-05-26 12:01
नयी दिल्ली: डीआरडीओ प्रमुख डॉ.वी.के.सारस्वत ने कहा है कि जटिल रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता एक मात्र रक्षा और अनुसंधान संगठन द्वारा प्राप्त नही की जा सकती है। आज डीआरडीओ प्रौद्योगिकी दिवस पुरस्कार समारोह में अपने वक्तव्य में उन्होंने तीनों सेनाओं से नवीनतम हथियारों की कमी को विदेशों से पूरा करने का आहवान किया।

भारत के 49 हजार मलिन बस्तियों में से 24 % नालों एवं नालियों के किनारे तथा 12 % रेलवे लाइनों के किनारे

विशेष संवाददाता - 2010-05-26 11:54
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने अपने 65वें दौर में शहरी मलिन बस्तियों पर किए गए सर्वेक्षण के आधार पर न्न शहरी मलिन बस्तियों की कुछ विशेषताएं, 2008-09 न्न नामक रिपोर्ट सं. 534 जारी की है । इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण का क्षेत्रीय कार्य जुलाई, 2008 से जून, 2009 के दौरान किया गया था । यह रिपोर्ट सर्वेक्षण किए गए 4738 शहरी खंडों में पाए गए 365 अधिसूचित तथा 365 गैर-अधिसूचित मलिन बस्तियों से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है ।

माओवाद की समस्या: रणनीति को लेकर कांग्रेस भ्रमित

अमूल्य गांगुली - 2010-05-26 11:06
वर्तमान माओवादी आंदोलन और पूर्ववर्त्ती नक्सलवादी आंदोलन में बहुत फर्क है। माओवादियों को किसी विदेशी ताकत का सहयोग मिलता नहीं दिखाई पड़ रहा है, जबकि नक्सलवदी आंदोलन को चीन का समर्थन प्राप्त था। माओवादियों को नेपाल के माओवादियों का भी समर्थन हासिल नहीं है, क्योंकि नेलाल के माओवादी तो चुनावी राजनीति में अपना कदम रख चुके हैं। बाहर से किसी प्रकार का समर्थन नहीं मिलने का फायदा माओवादियों को यह हो रहा है कि वे अपनी नीतियों को तैयार करने के लिए किसी विदेशी ताकत की ओर नहीं निहारते।

यूपीए सरकार का एक साल

विश्वास से भरे हैं प्रधानमंत्री
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-05-25 09:23
नई दिल्लीः अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरा होने के बाद संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जो कुछ कहा उससे यही पता चलता है कि उनका आत्म विश्वास बढ़ा है और अपन तय प्राथमिकताओं के आधार पर वे अपनी सरकार चलाना चाहतें हैं।

हिन्दु संसकृति को समझने और सुरक्षा की जरूरत

विकसत संसकृति पर विकृत मानसिकता हावी
डॉ. अतुल कुमार - 2010-05-24 10:57
भारत की मूल सभ्यता आर्य- द्रविड़ या सिन्धु घाटी की है जो आधुनिक काल में हिन्दु कहलायी। जाति प्रथा इसी हजारों सालों पुरानी सभ्यता सनातन धर्म की पहचान है, जिसका मूल आधार वर्ण व्यवस्था है। मनुवादी वर्ण-व्यवस्था ने समय के काल में वशंवादी स्वरूप ले लिया।

थाईलैंड का संकट

किसी दृष्टि से अप्रत्याशित या आश्चर्य की घटना नहीं
अवधेश कुमार - 2010-05-24 10:25
दक्षिण पूर्व एशिया के देश थाईलैंड में अंततः सेना ने विद्रोहियों का दमन करने में तत्कालिक सफलता पा ली है। हालांकि सेना और व्रिदोहियों के बीच राजधानी बैंकॉक में कायम मोर्चेबंदी पर दुनिया अचरज में थी। ऑक्सफोर्ड शिक्षित एवं एलिट माने जाने वाले प्रधानमंत्री अभिसित वेज्जाजिवा के लिए भी यह अप्रत्याशित था। उन्होंने अपने वक्तव्य में कह दिया कि यदि विद्रोह का अंत नहीं हुआ तो देश के अनेक भाग गृहयुद्ध के मुहाने पर पहुंच जाएंगे। धीरे-धीरे आपातकाल लागू किए गए राज्यों की संख्या बढ़ रही थी। 1933 से अब तक सैनिक विद्रोहों की कम से कम 18 वास्तविक या प्रयासों वाली परंपरा के देश में अभिसित को लोकतांत्रिक मूल्यांे का पालन करने वाले अनिर्वाचित नेता के रुप में देखा जाता था और सेना के प्रयोग के कारण उनकी आलोचना हो रही है।

प्रधानमंत्री के प्रेस कांफ्रेंस में अनुत्तरित रह गए गांव,गरीबी और अल्पसंख्यक से जुड़े सवाल

एस एन वर्मा - 2010-05-24 10:19
नई दिल्ली।यूपीए टू सरकार के कार्यकाल में आयोजित प्रधानमंत्री के प्रथम राष्ट्ीय प्रेस कांफ्रेंस में गांव,गरीबी,पिछड़ापन के श्राप से जुझता भारत की नाम मात्र चर्चा हुई।राष्ट्ीय मीडिया से राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने,विदेश नीति से जुड़े नाजुक मुद्े जैसी चटपटी और बिकाउ खबरों से संबंधित प्रश्न पूछे गए।क्षेत्रीय अखबार अपनी बारी की ताक मे लगे रहे।उर्दू मीडिया केा प्रश्न पूछने के मात्र दो अवसर मिले,बाकी उर्दू के खबरनवीस संचालन कर रहे प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहाकार हरिश खर्रे का मुंह ताकते रह गए ,और इसी बीच पत्रकार सम्मेलन समाप्त होने की घोषणा कर दी गयी।देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुस्लिमों से जुड़े कई अहम सवाल अनुत्तरित ही रह गए।
उर्दू अखबार के एक पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया कि मुस्लिमों के तालिम के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।उन्होंने कहा कि मुस्लिमो के शिक्षा के लिए काफी कम कार्य हुआ है।यह प्रश्न नेशनल सेंपल सर्वे की उस रिपोर्ट को आधार मान कर पूछा गया था जिसमें यह कहा गया है कि मुसलमान शिक्षा के मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से पिछडें हुए हैं।

झारखंड सरकार की गुत्थियां: अपने ही जाल में भाजपा फंसी

उपेन्द्र प्रसाद - 2010-05-22 09:38
नई दिल्लीः झारखंड की राजनीति भाजपा के गले की फांस बन गई है। उसने अपने आपको एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां वह अपने आपको विचित्र स्थिति में पर रही है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति तो पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी की हो रही है, जो पार्टी के शीर्ष पद पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की क्पा से पार्टी के एक जूनियर नेता होने के बावजूद पिराजमान हो गए हैं।

डॉप्लर मौसम रेडार : सटीक पूर्वानुमान प्रणाली

विशेष संवाददाता - 2010-05-21 09:41
नयी दिल्ली: भारतीय मौसम विभाग अपने पर्यवेक्षण तंत्र का आधुनिकीकरण कर रहा है। इसके लिए वह पूरे देश में अपने पुराने तथा पांरपरिक रेडारों के स्थान पर चरणबद्ध तरीके से एस-बैंड वाले डॉप्लर मौसम रेडारों को लगा रहा है। यह रेडार दिल्ली तथा इसके आसपास के इलाके में ख़राब मौसम की जानकरी देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभएगा।